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कहीं गर्भगृह में आज तक लाइट नहीं जली, तो किसी मंदिर को 450 साल बाद भी है औरंगजेब का खौफ

यहां सुबह 4 बजे से जब बाजार में लगे लाउड स्पीकर और मंदिरों में रामधुन बजनी शुरू होती है, तो अयोध्या जाग जाती है। सड़कों पर लोग थाली में फूल अगरबत्ती लिए बड़े-बड़े कदमों से मंदिरों की तरफ जाते हुए दिखाई पड़ते हैं। एक अनुमान के मुताबिक अयोध्या में 5000 से ज्यादा मंदिर है। छोटी-छोटी गलियों में हर घर मे राम-सीता की पूजा होते आपको दिखाई पड़ जाती है।

हम आपके लिए अयोध्या के तीन ऐसे ही मंदिरों की कहानी लाए हैं, जो अपनी अलग परंपरा, इतिहास की वजह से अन्य मंदिरों की कतार से अलग खड़े दिखाई पड़ते हैं। पेश है अयोध्या के अनोखे मंदिरों पर एक रिपोर्ट...

पहला मंदिर: यहां गर्भगृह में 100 सालों से नहीं लगी बिजली, हमेशा रथ पर सवार रहते हैं राम

अयोध्या में राम को पूजने के लिए देश-विदेश से लोग आते हैं। ऐसे ही अयोध्या में दक्षिण पंथ के दो मंदिर विजय राघव राम और अम्मा जी का मंदिर है। यह दोनों दक्षिण भारत परंपरा से राम की पूजा अर्चना करते हैं। इन दोनों मंदिरों की खास बात है कि यहां गर्भ गृह में लाइट नहीं जलाई जाती है।

अम्मा जी के मंदिर के महंत वेंकटाचार्य स्वामी कहते हैं कि गर्भ गृह का मतलब गर्भाशय से होता है। गर्भ में जब बच्चा होता है तो उसे कोई आर्टिफिशियल लाइट नहीं दी जाती है। आज के संदर्भ में देखें तो अब गर्भवती महिला का एक्सरे या सिटी स्कैन से परहेज किया जाता है।

उसी प्रकार गर्भगृह में श्रीराम भगवान को कोई तकलीफ न हो इसलिए लाइट नहीं लगवाई जाती है। हो सकता है उस लाइट की वजह से भगवान को कोई दुर्घटना का सामना करना पड़े इसलिए दक्षिण में भी जितने भी मंदिर हैं वहां भी गर्भगृह में लाइट नहीं लगाई जाती है।

विजय राघव राज मंदिर 100 साल से भी ज्यादा पुराना है। यहां गर्भगृह में लाइट नहीं जलती।

विभीषण कुंड मोहल्ले में स्थित विजय राघव राज मंदिर के महंत श्री धराचार्य जी महाराज बताते हैं कि विजय राघव राज महाराज का मंदिर 1904 में स्थापित हुआ था। तब से लगभग 100 साल से ज्यादा समय बीत गया, यहां लाइट गर्भगृह में नहीं लगी है।

उन्होंने बताया कि पहले पूरे मंदिर में लाइट की व्यवस्था नहीं थी। लेकिन, धीरे-धीरे लाइट दैनिक जीवन का हिस्सा बन गई, इसलिए मंदिर के गर्भगृह को छोड़कर सब जगह अब लाइट है। हालांकि, हम लोग अभी भी बिजली वाले पम्प का पानी पीने के बजाय कुंए के पानी का इस्तेमाल करते है। राम जी के प्राकट्य उत्सव में भी उनका श्रृंगार अशोक की पत्तियों और फूलों से करते है न कि लाइट वाली झालर लगाते हैं।

विजय राघव राज मंदिर के महंत श्री धराचार्य जी महाराज के मुताबिक, पहले पूरे मंदिर में ही लाइट नहीं थी। लेकिन अब गर्भगृह को छोड़कर हर जगह लाइट लगी है।

महंत ने बताया कि पिछले 15 वर्षों से मंदिर में अखंड रामनाम संकीर्तन चल रहा है। अम्मा जी के मंदिर के महंत श्री वेंकटाचार्य स्वामी कहते हैं कि हमारे राम हमेशा सीता, लक्ष्मण के साथ रथ पर सवार रहते हैं। यही वजह है कि मंदिर के सामने गरुण ध्वज बना रहता है। माना जाता है कि जिसे हनुमान जी संभाले रहते हैं।

दूसरा मंदिर: 420 साल बाद भी है इस मंदिर को औरंगजेब का खौफ, महीने में 2 बार ही खुलते हैं भक्तों के लिए मंदिर के कपाट

अयोध्या का उर्दू बाजार...कभी त्रेता नाथ मोहल्ला के नाम से प्रसिद्ध था। यहीं पर स्थित है त्रेता नाथ मंदिर..इस मंदिर की खासियत है कि इसके कपाट भक्तों के लिए महीने में सिर्फ 2 बार ही खुलते हैं। महीने में पड़ने वाली 2 एकादशी के दिन शाम को ही खुलता है।

सात पीढ़ी से मंदिर के पुजारी का काम देख रहे सुनील मिश्रा ने बताया कि मेरे पुरखों ने बताया कि यह मंदिर 500 साल से ज्यादा पुराना है। औरंगजेब के शासन काल में इसे तुड़वा दिया गया था। साथ ही मोहल्ले में तीन मस्जिदें भी तब बनवाई गई थीं। लगभग यह समय 1649 से 1707 के बीच का था। उस समय हमारे मोहल्ले का नाम भी त्रेता नाथ मोहल्ला था, लेकिन इसे उर्दू बाजार कर दिया गया।

ये तस्वीर त्रेता नाथ मंदिर के बाहर की है। ये करीब 500 साल पुराना मंदिर है। लेकिन इसे औरंगजेब ने तुड़वाकर मस्जिद बनवा दी थी।

उन्होंने बताया कि जब मंदिर दोबारा लगभग 150 साल पहले फिर बनाया गया तो भगवान को सुरक्षित रखने के लिए तमाम उपाय सुझाए गए। तब यह उपाय सुझाया गया कि यदि मंदिर में भीड़ नही होगी तो मंदिर को कोई नुकसान नहीं होगा, लेकिन भक्तों के लिए इसे महीने की दो एकादशी के दिन खोला जाने लगा। मंदिर में भगवान की पूजा अर्चना नियमित रूप से समय-समय से हम और हमारा परिवार करता है। लेकिन भक्तों के लिए सिर्फ दो दिन ही खुलता है।

त्रेता नाथ मंदिर महीने में सिर्फ दो बार ही आम लोगों के लिए खुलता है और वो भी एकादशी के दिन।

उन्होंने बताया कि अब माहौल बदल गया है, लेकिन परंपरा का निर्वहन हम करते हैं। इसी पूजा-अर्चना से हमारे परिवार का खर्च भी चलता है। मंदिर भी जीर्ण-शीर्ण अवस्था में आ गया है। लेकिन, पैसों की कमी के चलते इसे सही नहीं करा पा रहे हैं।

तीसरा मंदिर: लक्ष्मण है अयोध्या के राजकुमार, लेकिन है इकलौता मंदिर

अयोध्या में सरयू तट पर लक्ष्मण घाट है। जिससे सटा हुआ लक्ष्मण का यहां इकलौता मंदिर है। जिसे लक्ष्मण किला के नाम से भी जाना जाता है। पूरे अयोध्या में मुख्य रूप से लक्ष्मण का यही मंदिर है। यहां लक्ष्मण की शेषावतार में पूजा होती है।

यहां लक्ष्मण को शेषावतार के रूप में पूजा जाता है।

मंदिर के महंत मैथिली रमण शरण बताते है कि रामायण में एक प्रसंग है, जिसमें श्रीराम भगवान से काल व्यक्ति के रूप में आकर मिलते हैं और उनसे प्राण त्यागने की बात करते हैं। काल ने भगवान राम के सामने शर्त रखी थी कि यदि कोई हमारी बातें सुनेगा तो उसे अपनी जान से हाथ धोना पड़ेगा। तब भगवान श्रीराम ने लक्ष्मण को पहरेदारी के लिए लगाया।

वार्ता शुरू ही हुई थी कि ऋषि दुर्वासा श्रीराम से मिलने पहुंच गए। लक्ष्मण ने उन्हें रोकने की कोशिश की, लेकिन वह श्राप देने पर अड़ गए। इसके बाद लक्ष्मण भगवान को सूचना देने बीच वार्ता में पहुंच गए। जिसके बाद वह दंड के भागीदार खुद बन गए। उसके बाद लक्ष्मण ने सरयू घाट पर मानव देह त्याग कर शेषावतार का दर्शन कराया था। इस घाट को सहस्त्र धारा घाट भी बोला जाता है।

अयोध्या में स्थित लक्ष्मण जी का इकलौता मंदिर। इसे लक्ष्मण किला के नाम से भी जाना जाता है।

महंत ने बताया कि रीवा नरेश के दीवान ने 150 वर्ष पहले यह मंदिर बनवाया था। उन्होंने बताया कि महारानी विक्टोरिया ने रीवा नरेश को यह 52 बीघा जमीन दान में दी थी। यही नहीं रीवा नरेश ने मंदिर के खानपान यानी गल्ला पानी के लिए मध्य प्रदेश में 52 एकड़ जमीन दे रखी है।

उन्होंने बताया कि मेरे साथ यहां कई संत महात्मा रहते हैं। विद्यार्थी रहते हैं। सबके रहने-खाने की व्यवस्था मंदिर की ओर से ही होती है। उन्होंने बताया कि मान्यता है कि इस मंदिर में यदि कोई झूठी कसम खाता है तो उसका अनिष्ट होना तय है। क्योंकि लक्ष्मण जी ने श्रीराम को दिए वचन की खातिर अपनी देह त्याग दी थी।

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If the light has not been lit in the sanctum sanctorum till date, then some temple has the fear of Aurangzeb even after 450 years


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