Skip to main content

धूल ओढ़े 3 हथकरघे सुस्ता रहे हैं, उन पर मकड़ियां जाल बुन रही हैं, आधी बनी एक साड़ी हथकरघे से लिपटी है, जिसे मार्च में बुनना शुरू किया था

बनारस में कोयला बाजार के पास हसनपुरा नाम की एक बस्ती है। बेहद संकरी गलियों और खुली हुई नालियों वाली इस बस्ती में बुनकर समुदाय के हजारों परिवार रहते हैं। मोहम्मद अखलाक का परिवार भी इनमें से एक है। अखलाक उन चुनिंदा बुनकरों में से हैं जो आज भी हथकरघे यानी हैंडलूम के इस्तेमाल से बनारस की पहचान कहलाने वाली मशहूर बनारसी साड़ी बनाते हैं।

एक दौर था जब बनारस की गली-गली में हुनरमंद बुनकरों के हथकरघों की आवाज गूंजा करती थी। लेकिन वक्त के साथ हथकरघों की वह आवाज पावरलूम के शोर में कहीं खो गई। आज हालत ये है कि हसनपुरा में रहने वाले करीब दो हजार बुनकरों में से अखलाक जैसे बमुश्किल 10-12 बुनकर ही बचे हैं, जो अब भी हैंडलूम का इस्तेमाल कर रहे हैं। इस मोहल्ले के बाकी सभी बुनकर हैंडलूम को छोड़कर पावरलूम अपना चुके हैं। पूरे बनारस की बात करें तो बुनकरों की कुल आबादी में से दस फीसदी ही अब ऐसे हैं जो हैंडलूम चलाते हैं।

हसनपुरा में रहने वाले करीब दो हजार बुनकरों में से 10-12 बुनकर ही बचे हैं, जो अब भी हैंडलूम का इस्तेमाल कर रहे हैं।

हाथ से बनी जिस बनारसी साड़ी की कीमत हजारों और लाखों रुपए तक होती है, जिसे पहनने की हसरत बड़ी-बड़ी फिल्मी अभिनेत्रियों को होती है, जिस साड़ी की चर्चा देश के सबसे बड़े अमीर घरानों में होने वाली शादियों में भी होती है, उसे बनाने वाले बुनकर लगातार हैंडलूम से दूर क्यों होते जा रहे हैं?

इस सवाल के जवाब में मोहम्मद अखलाक कहते हैं, ‘हैंडलूम पर एक साड़ी दस से बीस दिनों में तैयार होती है, जबकि पावरलूम में एक दिन में तीन साड़ियां तैयार हो जाती हैं। दूसरा, हैंडलूम पर बनी एक साड़ी की कीमत कम से कम दस हजार रुपए होती है, जबकि पावरलूम पर वैसी ही साड़ी सिर्फ तीन सौ रुपए में बन जाती है। हालांकि, पावरलूम पर साड़ियां नकली रेशम की होती है और कारीगरी में भी इनकी हैंडलूम की साड़ी से कोई तुलना नहीं हो सकती, लेकिन इतनी बारीक नजर कम ही लोग रखते हैं। ग्राहक को सस्ता माल दिखता है तो उसकी ही मांग ज्यादा होती है। बुनकर को तो सिर्फ मजदूरी मिलती है। हाथ से बनी महंगी साड़ियों पर भी उसे उतनी ही मजदूरी ही मिलती है जितनी पावरलूम की सस्ती साड़ियों पर।’

इस साड़ी को अखलाक ने मार्च में बनाना शुरू किया था। लेकिन लॉकडाउन ने उनके काम को इस हद तक प्रभावित किया कि वे अभी तक इसका काम पूरा नहीं कर सके हैं।

बनारस में बुनकरों के अधिकारों के लिए लगातार सक्रिय रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता मनीष शर्मा हैंडलूम के खत्म होते जाने के लिए सरकारों को भी जिम्मेदार ठहराते हैं। वे कहते हैं कि हैंडलूम जैसे लघु उद्योग को संरक्षण देना सरकार की जिम्मेदारी होती है। ये सिर्फ हुनर को बचाने का ही मामला नहीं है बल्कि रोजगार का भी सवाल है। देश की बड़ी आबादी लघु उद्योगों पर ही निर्भर है।

मनीष कहते हैं, ‘अटल बिहारी के प्रधानमंत्री रहते हैंडलूम की कमर टूटना शुरू हुआ। उस दौर में 1400 ऐसे उत्पादों को बनाने की अनुमति बड़े पूंजीपतियों को दे दी गई जो पहले तक सिर्फ लघु उद्योग में ही बनाए जा सकते थे। हैंडलूम पर बनने वाली बनारसी साड़ी भी इनमें से एक थी। इस फैसले के साथ ही ये काम पावरलूम पर होने लगा। इससे साड़ियों का प्रोडक्शन तो बढ़ गया, लेकिन हैंडलूम का हुनर जानने वाले लाखों बुनकर अपना पुश्तैनी काम छोड़ने पर मजबूर हो गए। जो गिने-चुने बुनकर अब भी ये काम कर रहे हैं उनकी स्थिति भी बेहद चिंताजनक बन पड़ी है।’

मोहम्मद अखलाक जैसे बुनकर जो अब भी हैंडलूम का काम कर रहे हैं वे आज किस स्थिति में हैं? यह सवाल करने पर अखलाक कोई जवाब नहीं देते और चुपचाप अपने उस कमरे का दरवाजा खोल देते हैं जहां उनके हैंडलूम रखे हुए हैं। ये कमरा ही सारे सवालों का जवाब दे रहा है। धूल की चादर ओढ़े तीन हथकरघे यहां सुस्ता रहे हैं, जिन पर मकड़ियों के जाल बन गए हैं। आधी बनी हुई एक साड़ी अब भी एक हथकरघे से लिपटी हुई है जिसे अखलाक ने मार्च में बनाना शुरू किया था। लेकिन लॉकडाउन ने उनके काम को इस हद तक प्रभावित किया कि इस अधूरी साड़ी को पूरा करने भर का ताना-बाना भी वो जुटा नहीं सके।

बनारस में काम करने वाले बुनकरों की एक बड़ी आबादी हैंडलूम छोड़कर पावरलूम अपना रही है। क्योंकि पावरलूम पर बनी साड़ियों की कीमत कम होती है और इन्हें बनाने में वक्त भी कम लगता है।

बहुत से लोगों को यह जानकारी शायद न हो कि ‘ताना-बाना’ शब्द असल में हथकरघे से ही निकला है। इस करघे पर रेशम के जो धागे सीधे और तने हुए लगते हैं उन्हें ताना कहा जाता है और जो धागे इन्हें आपस में बुनते हैं उन्हें बाना कहा जाता है। ताना और बाना जब आपस में सटीक बुनावट में बैठते हैं तो ही एक मजबूत साड़ी या कपड़ा तैयार होता है। हथकरघे से निकल कर ‘ताना-बाना’ शब्द तो मुहावरा तक बन गया, लेकिन असल में हथकरघा चलाने वालों का पूरा ताना-बाना ही लगभग बिखर चुका है।

बीते बीस सालों में बुनकरों की एक बड़ी आबादी यह काम हमेशा के लिए छोड़ चुकी है और मामूली मजदूरी करने को मजबूर हो गई है। एक बड़ी आबादी ऐसी भी है जिसने हैंडलूम छोड़कर पावरलूम अपना लिए। लेकिन अब इन लोगों पर भी अस्तित्व का संकट आ गया है। लॉकडाउन ने पहले ही बुनकरों की हालात बेहद खराब कर रखी है, ऊपर से उत्तर प्रदेश सरकार ने बुनकरों को मिलने वाली बिजली सब्सिडी समाप्त करने का फैसला कर लिया है। मनीष शर्मा कहते हैं, ‘अगर सब्सिडी खत्म हो गई तो तय मानिए कि बुनकर समुदाय हमेशा-हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा।’

अपना बुनकर कार्ड दिखाते अबुल हसन। इनके पास 7 पावरलूम हैं। मार्च से ही इनकी बिजली काट ली गई है तब से इनका काम ठप पड़ा है।

कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार बनारस में आज करीब सवा चार लाख बुनकर हैं। उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव के मुख्यमंत्री रहते हुए साल 2005 में बुनकरों को बिजली में छूट मिलना शुरू हुआ था। ये वही दौर था जब पावरलूम तेजी से हैंडलूम को पछाड़ रहे थे और बुनकर एक-एक कर पावरलूम अपना रहे थे। बनारस के बुनकर बाहुल्य जैतपुरा में रहने वाले अबुल हसन बताते हैं, ‘बुनकरों के लिए बिजली का एक फ्लैट रेट तय था।

शुरुआत में ये रेट एक मशीन का 65 रुपए प्रति माह था। बीच-बीच में ये बढ़ता भी रहा और आज लगभग 150 रुपए प्रति माह है। लेकिन अब सरकार का कहना है कि बीती जनवरी से ही सभी बुनकरों को बिजली का बिल यूनिट के हिसाब से देना होगा और करीब 7 रुपए एक यूनिट का रेट होगा। अगर सरकार ये फैसला वापस नहीं लेती तो हमें ये काम छोड़ना पड़ेगा।’

अबुल हसन के पास कुल सात पावरलूम हैं। इनका जनवरी से लेकर मार्च तक का बिजली का बिल सवा लाख रुपए आया है और मार्च से ही इनकी बिजली कटी हुई है। अबुल बताते हैं, ‘जिस दिन देश भर में जनता कर्फ्यू लगा था, उसके अगले ही दिन मेरी बिजली काट ली गई थी। उसी दिन से सारा काम ठप पड़ा हुआ है।’

अनीर-उर-रहमान के पास अपने सात पावरलूम हैं लेकिन सभी पूरी तरह से बंद पड़े हैं। घर का खर्च चलाने के लिए वे अपने कारखाने के दरवाजे पर पान की दुकान लगा रहे हैं।

बनारस की जिन गलियों से पूरा दिन पावरलूम की आवाजें उठती थीं, इन दिनों उन सभी गलियों में लगभग सन्नाटा पसरा हुआ मिलता है। इस सन्नाटे को तोड़ते कुछ पावरलूम अब भी चल रहे हैं, लेकिन उनकी संख्या उंगलियों पर गिनी जा सकती है। कई बुनकरों की बिजली काट ली गई है और कई ऐसे हैं जिनके यहां बिजली का बिल दो से तीन लाख रुपए तक आया है। महीने का ज्यादा से ज्यादा 25-30 हजार कमाने वाले बड़े बुनकर भी इतना भारी बिल कैसे चुकाएंगे, वह भी तब जब पिछले कई महीनों से काम बंद पड़ा है, ये लोग खुद भी नहीं जानते।

बाकराबाद के रहने वाले बुनकर अनीर-उर-रहमान के पास अपने सात पावरलूम हैं लेकिन सभी पूरी तरह से बंद पड़े हैं। घर का खर्च चलाने के लिए अनीर अब अपने कारखाने के दरवाजे पर ही पान की दुकान लगाने लगे हैं। वे बताते हैं, ‘हमारे पास कच्चा माल खरीदने का भी पैसा नहीं है। लॉकडाउन के समय से ही काम पूरी तरह बंद है। अब बिजली का जो रेट तय हुआ है उसके बाद तो इस धंधे में मजदूरी भी नहीं निकलेगी। ये सारी पावरलूम मशीनें हमें कबाड़ के भाव बेचनी पड़ेंगी, अगर बिजली बिल पर सरकार ने फैसला वापस नहीं लिया।’

सरकार ने बिजली की जो नई दरें तय की हैं, उनके अनुसार भुगतान बुनकरों ने अब तक नहीं किया है। स्थानीय बुनकर नोमान अहमद कहते हैं कि बुनकरों के लिए ये भुगतान करना मुमकिन भी नहीं है। वे बताते हैं, ‘जिस बुनकर के पास एक पावरलूम है वह पूरे महीने में ज्यादा से ज्यादा 6-7 हजार रुपए बचा पाता है। वो भी तब जब वो अपने पावरलूम पर मजदूरी भी खुद करता है। अब अगर नई दरों से बिजली का बिल देना होगा, तो एक पावरलूम का महीने का बिल ही करीब चार हजार रुपए आएगा। ऐसे में बुनकर कैसे जिंदा रह पाएगा।’

बनारसी साड़ी पर बनने वाला डिजाइन तैयार करते शोएब। ये लोग भी पीढ़ियों से मशहूर बनारसी डिजाइन बनाने का काम करते आ रहे हैं।

बुनकर समाज में सिर्फ वे ही लोग शामिल नहीं हैं जो बनारसी साड़ी या दुपट्टे बनाने का काम करते हैं। कई अलग-अलग तरह के लोग इस समाज का हिस्सा हैं जो पूरी-तरह से एक दूसरे पर निर्भर हैं। मसलन, साड़ियों पर डिजाइन बनाने वाले अलग हैं जिन्हें नक्शेबंद कहा जाता है। ये लोग भी पीढ़ियों से मशहूर बनारसी डिजाइन बनाने का काम करते आ रहे हैं।

इनके अलावा वे लोग हैं जिन्होंने अपने पूर्वजों से नक्शेबंद के बनाए गए डिजाइन को उस गत्ते पर उतारने का हुनर विरासत में लिया है जो हैंडलूम पर चढ़ता है और जिससे यह डिजाइन साड़ियों पर उतरता है। फिर रेशम पर रंग चढ़ाने वाले अलग हैं, ताना-बाना बेचने वाले अलग और हैंडलूम खराब होने पर उसकी मरम्मत करने वाले अलग। इस सबके बाद गद्दीदार अलग हैं जो बुनकरों के माल को खरीद कर आम ग्राहक तक पहुंचाते हैं। ये सब लोग ही बनारसी साड़ी तैयार करने वाले समाज का ताना-बाना कहे जा सकते हैं। ये पूरा समाज ही आज अस्तित्व के संकट से जूझ रहा है।

बनारस में आज करीब सवा चार लाख बुनकर हैं। इनमें से अब दस फीसदी ही ऐसे हैं जो हैंडलूम चलाते हैं।

मनीष शर्मा कहते हैं, ‘पहले नियोजित तरीके से हैंडलूम खत्म किए गए। हथकरघे अब बहुत खोजने से ही कहीं मिलते हैं। अब बड़े पूंजीपतियों के हित साधने के लिए पावरलूम को भी खत्म किया जा रहा है। ये फैसला एक झटके में सिर्फ लाखों बुनकरों को ही हमेशा के लिए खत्म नहीं करेगा बल्कि सदियों पुरानी बनारस की पहचान को ही हमेशा के लिए मिटा देगा। एक पूरी संस्कृति आज विलुप्त हो जाने के मुहाने पर खड़ी है और अगर जनता ने बुनकरों की आवाज नहीं उठाई तो बनारस के बुनकर सिर्फ इतिहास में पढ़ाए जाएंगे।’



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
Work stopped since public curfew; Spiders have made nets on handlooms, many weavers have been cut off, some have got a bill of two lakh rupees


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/34Mim0t
via IFTTT

Comments

Popular posts from this blog

156.7 Kmph Sensation Awaits India Debut, Bangladesh Start Life After Shakib

Pace sensation Mayank Yadav is expected to unleash his raw speed while the absence of India's T20 regulars will provide another opportunity to the fringe players in the three-match series against Bangladesh, beginning here Sunday. Having consistently generated speed in excess of 150kmph in his maiden IPL earlier this year, Mayank had drawn the attention of the cricketing world before a side strain ruled him out of the tournament. Usually, one has to prove fitness in domestic cricket to be considered for national selection but the 22-year-old has been fast-tracked into the side considering his special talent. The series against Bangladesh will be a test of his fitness and temperament. It is yet to be figured if he can display the same accuracy and control that he exhibited in the IPL. Besides Mayank, fellow Delhi pacer Harshit Rana and all-rounder Nitish Kumar Reddy could also make their India debut over the course of the series. Nitish was picked for the Zimbabwe tour post the T...

PCB Not Happy With Pak Star Over Social Media Post On Babar Snub: Report

The Pakistan Cricket Board (PCB) is not pleased that Fakhar Zaman questioned the selection panel's decision to sideline Babar Azam from the Test side. The panel dropped former captain Babar Azam when they announced the squad for the remaining two Tests against England in Multan and Rawalpindi. Zaman took to X to question the decision, inviting the ire of the PCB. "The top board officials are not pleased with the tweet sent out by Fakhar and relevant persons are having a word with him about it," a well-informed PCB source said. "It's concerning to hear suggestions about dropping Babar Azam. India didn't bench Virat Kohli during his rough stretch between 2020 and 2023, when he averaged 19.33, 28.21, and 26.50, respectively. "If we are considering sidelining our premier batsman, arguably the best Pakistan has ever produced, it could send a deeply negative message across the team. There is still time to avoid pressing the panic button; we should focus on sa...

T20 WC Live: Netherlands Face Sri Lanka In A Must-Win Game For Dutch

Sri Lanka vs Netherlands LIVE Updates, T20 World Cup 2024: Netherlands may be out of the 2024 T20 World Cup even before their match against Sri Lanka ends, if Bangladesh beat Nepal. However, the Dutch need to beat Sri Lanka by a healthy scoreline to keep any hopes of qualifying to the Super 8 stage alive. The game also offers Sri Lanka a chance to get their first win, in what has been a hugely disappointing tournament for the 2014 champions. They would likely finish bottom of their group if they fail to win. ( Live Scorecard | Points Table ) source https://sports.ndtv.com/cricket/sri-lanka-vs-netherlands-live-score-icc-t20-world-cup-2024-38th-match-sl-vs-ned-live-cricket-score-5903285