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क्यों राफेल की तरह पहले मिग 21 और जगुआर भी अंबाला में ही तैनात हुए थे और इससे मुकाबले के लिए चीन के पास कोई फाइटर नहीं हैं

भारत को 27 जुलाई तक फ्रांस से 6 राफेल फाइटर जेट मिलने वाले हैं। इन फाइटर जेट को अम्बाला एयरबेस पर तैनात किया जाएगा। भारत राफेल बनाने वाली फ्रेंच कंपनी दसॉ एविएशन से 36 फाइटर जेट खरीदेगा। उम्मीद है कि 2022 तक ये सभीफाइटर जेट मिल जाएंगे।

एलएसी पर चीन के साथ जारी तनाव के बीच राफेल हमारे लिए बहुत जरूरी भी था। भारतीय वायुसेना ने पहले भी फ्रांस, रूस और ब्रिटेन जैसे देशों से फाइटर जेट खरीदे हैं। फ्रांस से हमने जो भी फाइटर जेट खरीदे हैं, वो सभी दसॉ एविएशन के हैं।

इसमें 1953 से 1965 के बीच 104 एमडी 450 ओरागेन (भारत में इसे हरिकेन कहते हैं) खरीदे थे। 1957 से 1973 के बीच 110 एमडी 454 मिस्टेरे-5 खरीदे थे। 1985 में मिराज 2000 खरीदे थे। मिराज का इस्तेमाल हम कारगिल की लड़ाई और बालाकोट एयरस्ट्राइक में भी कर चुके हैं।

27 जुलाई को फ्रांस से राफेल फाइटर जेट की पहले खेप आएगी। इसके तहत 6 विमान भारत पहुंचेंगे।

राफेल फाइटर जेट के आने के बाद भारत की कितनी ताकत बढ़ेगी? चीन के विमानों की तुलना में ये कितना शक्तिशाली होगा? ये सब समझने के लिए पढ़िए रिटायर्ड एयर मार्शल अनिल चोपड़ा का एक्सप्लेनर...

भारतीय पायलट राफेल भारत लेकर पहुंचेंगे
राफेल को भारतीय वायुसेना के फाइटर पायलट ही फ्रांस से लेकर भारत पहुंचेंगे। भारत आने से पहले पायलट फ्रांस में ही उड़ान भरकर प्रैक्टिस करेंगे। फ्रांस के बोर्डेक्स मेरिग्नेक एयरफील्ड से भारतीय पायलट 25 जुलाई को उड़ान भर सकते हैं। 6 एयरक्राफ्ट तीन-तीनविमान के ग्रुप में बंटेंगे। इन विमानों के साथ सी-70 या आईएल-76 जैसे ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट भी होंगे। ये एयरक्राफ्ट इंजीनियर्स, टेक्नीशियन और स्पेयर पार्ट्स को लेकर आएंगे।

इसके लिए एक बड़े विमान की जरूरत है, क्योंकि एक विशेष लोडिंग ट्रॉली के साथ एक स्पेयर इंजन भी होगा। इस समय राफेल अनआर्मर्ड होंगे, इसलिए एक्सटर्नल फ्यूल टैंक की भी जरूरत होगी। फ्रांस से भारत आने के बीच सिर्फ एक ही स्टॉप होगा। पहले तो फ्रांस की वायुसेना इसमें फ्यूल भरने की सुविधा देगी। करीब 4 घंटे तक उड़ान भरने के बाद रिफ्यूलिंग के लिए और पायलट के आराम के लिए इसको रोकना होगा। मिराज 2000 जब भारत आया था तो कई जगह रुका था, लेकिन राफेल एक स्टॉप के बाद सीधे अम्बाला एयरबेस पर उतरेगा।

तस्वीर पिछले साल की है जब रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह राफेल विमान लाने के लिए फ्रांस पहुंचे थे।

फ्रांस में हुई है राफेल के पायलट्स की ट्रेनिंग

राफेल उड़ाने के लिए भारतीय वायुसेना के पायलट्स की ट्रेनिंग फ्रांस के मोंट-डे-मार्सन एयरबेस पर हुई। यहीं पर मिराज 2000 की ट्रेनिंग भी हुई थी। न सिर्फ भारतीय वायुसेना के पायलट्स बल्कि इंजीनियरों और टेक्नीशियंस को भी ट्रेनिंग दी गई है। यही लोग भारत आकर दूसरे साथियों को ट्रेनिंग देंगे।
17वीं स्क्वाड्रन गोल्डन एरोज राफेल की पहली स्क्वाड्रन होगी। खास बात ये है कि पूर्व एयर चीफ बीएस धनोआ ने कारगिल युद्ध के दौरान इस स्क्वाड्रन की कमान संभाली थी। विदेशों से ट्रेनिंग लेकर आए पायलट इस स्क्वाड्रन में तैनात होंगे। एक साल बाद जब हाशमीरा में राफेल की दूसरी स्क्वाड्रन तैयार होगी, तब वहां पायलट का ग्रुप बंट जाएगा।

मिग 21 और जगुआर भी अंबाला में ही तैनात हुए थे

शुरुआत में जगुआर और मिग-21 बाइसन जैसे लड़ाकू विमानों को भी अंबालाएयरबेस पर ही तैनात किया गया था। यह एयरबेस भारत की पश्चिमी सीमा से 200 किमी दूर है और पाकिस्तान के सरगोधाएयरबेस के नजदीक भी है। यहां पर तैनाती से पश्चिमी सीमा पर पाकिस्तान के खिलाफ तेजी से एक्शन लिया जा सकेगा। दिलचस्प बात ये भी है कि अंबालाएयरबेस चीन की सीमा से भी 200 किमी की दूरी पर है। अंबालाएयरबेस से 300 किमी दूर लेह के सामने चीन का न्गारी गर गुंसा एयरबेस है।

राफेल की तैनाती के लिए यहां पर इन्फ्रास्ट्रक्चर भी तैयार किया गया है। स्पेशल ब्लास्ट पेन, एवियोनिक्स और इलेक्ट्रॉनिक्स वारफेयर सिस्टम लैब, हथियार तैयार करने वाले क्षेत्रों समेत तकनीकी इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार किया गया है या फिर उसे रिडेवलप किया गया है। हालांकि, इंजन के टेस्ट के लिए और सुविधाओं की जरूरत हो सकती है। बाद में इसी तरह का इन्फ्रास्ट्रक्चर हाशिमारा में भी तैयार किया जाएगा।

सबसे फुर्तिला विमान जिससे परमाणु हमला भी कर सकते हैं

राफेल डीएच (टू-सीटर) और राफेल ईएच (सिंगल सीटर), दोनों ही ट्विन इंजन, डेल्टा-विंग, सेमी स्टील्थ कैपेबिलिटीज के साथ चौथी जनरेशन का विमान है। ये न सिर्फ फुर्तीला विमान है, बल्कि इससे परमाणु हमला भी किया जा सकता है।

इस फाइटर जेट को रडार क्रॉस-सेक्शन और इन्फ्रा-रेड सिग्नेचर के साथ डिजाइन किया गया है। इसमें ग्लास कॉकपिट है। इसके साथ ही एक कम्प्यूटर सिस्टम भी है, जो पायलट को कमांड और कंट्रोल करने में मदद करता है। इसमें ताकतवर एम 88 इंजन लगा हुआ है। राफेल में एक एडवांस्ड एवियोनिक्स सूट भी है। इसमें लगा रडार, इलेक्ट्रॉनिक कम्युनिकेशन सिस्टम और सेल्फ प्रोटेक्शन इक्विपमेंट की लागत पूरे विमान की कुल कीमत का 30% है।

इस जेट में आरबीई 2 एए एक्टिव इलेक्ट्रॉनिकली स्कैन्ड एरे (AESA) रडार लगा है, जो लो-ऑब्जर्वेशन टारगेट को पहचानने में मदद करता है। इसमें सिंथेटिक अपरचर रडार (SAR) भी है, जो आसानी से जाम नहीं हो सकता। जबकि, इसमें लगा स्पेक्ट्रा लंबी दूरी के टारगेट को भी पहचान सकता है।

तस्वीर पिछले साल अक्टूबर की है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह बीच में, एक तरफ भारत के सैन्य अधिकारी व दूसरी तरफ फ्रांस के।

इन सबके अलावा किसी भी खतरे की आशंका की स्थिति मेंइसमें लगा रडार वॉर्निंग रिसिवर, लेजर वॉर्निंग और मिसाइल एप्रोच वॉर्निंग अलर्ट हो जाता है और रडार को जाम करने से बचाता है। इसके अलावा राफेल का रडार सिस्टम 100 किमी के दायरे में भी टारगेट को डिटेक्ट कर लेता है।

राफेल में आधुनिक हथियार भी हैं। जैसे- इसमें 125 राउंड के साथ 30 एमएम की कैनन है। ये एक बार में साढ़े 9 हजार किलो का सामान ले जा सकता है। इसमें हवा से हवा में मारने वाली मैजिक-II, एमबीडीए मीका आईआर या ईएम और एमबीडीए मीटियर जैसी मिसाइलें हैं। ये मिसाइलें हवा में 150 किमी तक के टारगेट को मार सकती हैं।

इसमें हवा से जमीन में मारने की भी ताकत है। इसकी रेंज 560 किमी है।इस एयरक्राफ्ट का इस्तेमाल इराक, अफगानिस्तान, लीबिया, माली और सीरिया में हो चुका है। इस फाइटर जेट के आने से भारत की ताकत हिंद महासागर में भी बढे़गी।

राफेल से मुकाबले के लिए चीन के पास कोई फाइटर नहीं

चीन के पास अभी चेंगड़ू जे-10 विमान है, जो इजरायल के लावी एयरक्राफ्ट का मॉडिफाइड रूप है। चीन का ये विमान अमेरिका के एफ-16 ए/बी के बराबर ही है। चीन के पास ऐसे 400 विमान हैं। इस विमान में 100 किमी तक की रेंज में मारने वाली पीएल-12 बीवीआर मिसाइलें हैं। इसके अलावा चीन के पास शेन्यांग जे-11 भी है, जो सुखोई 27 की कॉपी है। इसमें पीएल-12 मिसाइलें लगी हैं। ये भारत के पास मौजूद सुखोई 30एमकेआई की तरह है।

इसके अलावा चीन ने एक शेन्यांग जे-16 फाइटर जेट भी बनाया है, जो रूस के सुखोई 30 एमकेके का मॉडिफाइड वर्जन है। चीन के पास ऐसे 130 फाइटर जेट हैं। इस विमान में 150 किमी तक की मारक क्षमता वाली पीएल15 मिसाइल भी तैनात हो सकती हैं। चीन के पास सुखोई 30 एमकेके भी है, जो भारतीय वायुसेना के पास मौजूद सुखोई-30एमकेआई की तरह है। चीन के पास सुखोई 35 भी है, जो सुखोई 30 एमकेके की तुलना में एडवांस्ड वैरियंट है। इन सबके अलावा चीन के पास 5वीं पीढ़ी का जे-20 फाइटर जेट भी है। जो अभी ऑपरेशनल नहीं है।

पिछले साल रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह नेराफेल में सवार हुए थे। उन्होंने करीब 30 मिनट तक उड़ान भरी।

जबकि, भारतीय वायुसेना के पास राफेल, सुखोई 30एमकेआई, मिराज 2000 और मिग 29 का एक शानदार कॉम्बिनेशन है। इसके अलावा जगुआर, मिग 21 बाइसन और स्वदेश एलसीए एमके1 भी है। भारत को जो राफेल मिलने वाला है, उसका मुकाबला करने के लिए चीन के पास कोई लड़ाकू विमान नहीं है।

वहीं, पाकिस्तान के पास सबसे अच्छा फाइटर जेट एफ-16 ब्लॉक 52 है, जिसकी मिसाइल की मारक क्षमता 120 किमी तक की है। कुल मिलाकर पाकिस्तान और चीन की तुलना में भारतीय वायुसेना के पास अच्छे फाइटर जेट हैं।

आधुनिक हथियारों से लैस राफेल सबसे बेहतरीन लड़ाकू विमान है, जिसमें जमीनी हमले, एंटी-शिप स्ट्राइक और परमाणु हमले करने की ताकत है। दसॉ का बनाया गया फाइटर जेट एक ओम्नीरोल विमान है। इसमें AESA रडार, आईआरएसटी, एवियोनिक्स फ्यूस्ड डेटा, स्टील्थ फीचर्स, स्पेक्ट्रा प्रोटेक्शन सूट है। सबसे खास बात ये है कि इसके दोनों तरफ हथियार रखे जा सकते हैं। हमारे पास 36 राफेल विमान होंगे। हालांकि, इतने विमान दो स्क्वाड्रन भी नहीं बनाते। भारत ने भी पहले ऐसा किया है और बाद में 36 विमान ऑर्डर किए हैं।

(एयर मार्शल अनिल चोपड़ा, रिटायर्ड फाइटर पायलट हैं, वे बतौर एयर ऑफिसर इंचार्ज पर्सनल 2012 में रिटायर हुए हैं।)



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Importance and power of rafale fighter jet with compared to china.


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