मुंबई की मेयर दिन भर स्लम में राशन-दवाइयां बंटवाती हैं, रात में नर्स बन सरकारी अस्पतालों में मरीजों की देखभाल करती हैं
मुंबई के सायन अस्पताल में इन दिनों एक नई नर्स दौड़ भाग कर रही है। यह दूसरों से अलग इसलिए है क्योंकि यह मुंबई की मेयर भी हैं। मेयर किशोरी पेडनेकर अपने बैग में अब दूसरे ज़रूरी सामान की तरह नर्स की यूनिफॉर्म भी रखती हैं। वह कहती हैं ‘पता नहीं कि किस अस्पताल से कब फोन आ जाए।
किशोरी पेडनेकर दिन में मेयर होने की जिम्मेदारी निभाती हैं और रात में उन्होंने नर्स बनकर कोरोना मरीजों की देखभाल करने का फैसला लिया है। वह बताती हैं कि उन्होंने दो तीन दिन पहले ही दक्षिण मुंबई के अस्पतालों में बतौर नर्स सेवाएं देने के लिए आग्रह किया था। मंगलवारको दिन में ही सायन अस्पताल से फोन आ गया था। जब दैनिक भास्कर की उनसे बात हुई तो वह इसी अस्पताल में थी। किशोरी ने बताया किरात में वह मुंबई के नायर अस्पताल में आठ घंटे की डयूटी करने वाली हैं। जिस भी अस्पताल से फोन आएगा,डयूटी करने जाऊंगी।
किशोरी ने 1979 में एएनएम का कोर्स किया था
दिन में वह मेयर होने के नाते सारे काम निपटाती हैं। जिसमें स्लम एरिया में खाने की व्यवस्था से लेकर दवाईंया और बाकी जरूरतें मुहैया कराना शामिल है।किशोरी शादी से पहले नर्स की नौकरी किया करती थी। वह बताती हैं कि 1979 में थाणे से एएनएम का कोर्स किया था। पिता दशरथ कावले मिल वर्कर थे और मां चारुशिलाघर का कामकाज संभालती थीं। पेडनेकर के अनुसार, चार बहनों और एक भाई का खर्च बहुत ज्यादा था। इसलिए पिता ने हम लोगों की आगे की पढ़ाई रोक दी। एएनएम का कोर्स करने के बादजवाहर लाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट अस्पताल में नौकरी शुरूकर दी।
किशोरी बताती हैं कि महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे ने अपील कि थी कि जिसे भी मेडिकल फील्ड का काम आता है, वह मैदान में आए।कोरोना एक जंग है जिसे हमें जीतना है। महाराष्ट्र को जरूरत है, तब मैदान में नहीं आएंगे, तो कब आएंगे। जब मुझे नर्स का काम आता है तो सीएम की अपील और अस्पतालों में जरूरत को देखते हुए मैं किसी हालत में घर पर नहीं रह सकती।
किशोरी के पति उनकी पूरी मदद करते हैं। यहां तक कि शादी के बादपति ने पढ़ाई पूरी करवाई। उसके बाद किशोरी शिवसेना की फायर फाइटर मंदाकिनी चौहान के साथ समाजसेवा के काम में लग गई और वहीं से राजनीतिक सफर की शुरुआत हुई।
मुंबई में नर्सिंग कॉलेज के स्टूडेंट्स भी काम कर रहे हैं। किशोरी के अनुसार, मैं पहले भी इन बच्चों का हौसला बढ़ाने के लिए अस्पताल जाती थीं, लेकिन अब यूनिफॉर्म में जाऊंगी तो उनका हौसला और बढ़ेगा। मुंबई की फर्स्ट सिटिजन किशोरी यह भी कहती है कि पहाड़ भी आ जाए, तो टकरा जाएंगे। डॉक्टर और नर्स होने का सुख और किस्मत भगवान हर किसी के नसीब में नहीं लिखता।
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